Friday, January 29, 2010

आशा का दूसरा नाम है त्रिजटा


मनुष्य जीवन सुखों और दुखों का मिलाजुला सामुच्य है। जीवन में सुख हैं तो दुख भी हैं। ऐसा कोई भी नहीं जिसके जीवन में केवल सुख ही लिखे हों। विपत्ति हर किसी पर आती है। लेकिन विपत्ति की घड़ी का इंसान ने किस तरह सामना किया ये देखने की बात है। वैसे तो रामायण साफ कहती है कि 'धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।।' लेकिन रामायण ये भी बताती है कि विपत्ति काल में ईश्वर आपको अकेला नहीं छोड़ता, कोई न कोई कारण आपके साथ ऐसा जोड़ देता है जो आपकी उम्मीद जगाए रखता है। जरूरत है तो बस ईश्वर के उस संकेत को समझने की।

माता सीता का पूरा जीवन विपत्तियों से भरा रहा। इनमें सबसे बड़ी विपत्ति थी रावण द्वारा सीता का अपहरण। सीता जैसी पतिव्रता स्त्री के लिए राक्षस नगरी लंका में एक पल काटना भी मुश्किल था। लेकिन फिर भी उन्होंने श्री राम के इंतजार में वहां समय बिताया। आखिर कैसे। जिस स्त्री का पति के वियोग में एक पल भी जीना मुश्किल हो उसके लिए इतना समय बिताना कैसे संभव हो गया। अगर थोड़ा सा ध्यान दें तो हमें इसका जवाब मिल जायेगा। ये संभव हो सका त्रिजटा के संग की वजह से। घोर राक्षस नगरी में भी सीता को हिम्मत बंधाने के लिए त्रिजटा मिल गई। सीता ने शायद ही ऐसी कल्पना की होगी कि लंका में उसको कोई ऐसा स्नेही भी मिल सकता है। सीता ने निराश होकर बार-बार खुद को खत्म करने का विचार किया, लेकिन त्रिजटा ने हमेशा सीता के मन में उम्मीदों के दीप जलाए। उसने हमेशा यही कहा कि राम आएंगे और तुमको लेकर जाएंगे। ये त्रिजटा का ढांढस ही था, जिसने सीता को कभी हिम्मत नहीं हारने दी। सीता को त्रिजटा से इतनी आत्मीयता हो गई कि उसके साथ माता और पुत्री का रिश्ता स्थापित कर लिया और कहा कि 'मातु विपति संगिनी तैं मोरी', हे माता तुम इस विपत्ति काल में मेरी संगिनी हो।

ऐसा केवल सीता के साथ ही नहीं हुआ। हर किसी के जीवन में जब विपत्ति काल आता है तो ईश्वर कोई न कोई साधन ऐसा जरूर दे देते हैं जो हमारी हिम्मत को टूटने नहीं देते। हमें केवल ऐसे लोगों को पहचानने की आवश्यकता है। बुरे वक्त में हमें ऐसे लोगों का संग ज्यादा करना चाहिए। निराश करने वालों की बातों पर तो कतई ध्यान नहीं देना चाहिए। रावण ने सीता को बार-बार निराश करने की कोशिश की, लेकिन सीता ने न उसकी बात सुनी और न उसकी ओर देखा। बुरे वक्त में ऐसा हर किसी के साथ होता है। एक ओर ऐसे लोग मिलेंगे जो आपको तरह-तरह से निराश करने की कोशिश करेंगे, आपका मनोबल तोड़ेंगे और आपका मजाक भी उड़ाएंगे, लेकिन बुरे वक्त का ख्याल करके ऐसे लोगों की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। हमें ऐसे लोगों के साथ बैठना चाहिए जो हमारी उम्मीद को जगाने वाले हैं। हमें अपने लिए त्रिजटा की तलाश करनी चाहिए। ये त्रिजटा आपको अपने माता-पिता, अपने भाई-बहन या अपने दोस्तों के रूप में आसानी से मिल जाएगी। बस जरूरत थोड़ा सा ध्यान देने की है। क्योंकि हम अपने करीबियों को उतना महत्व नहीं देते इसलिए उनसे विचार-विमर्श करने में सकुचाते हैं। जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए।

किसी कारणवश अगर हम अपने नजदीकी लोगों से दूर हैं। परदेस में या फिर दूसरे शहर में तब भी बुरे वक्त में आपको त्रिजटा जरूर मिलेगी, जिस तरह सीता को मिली। क्या सीता ने सोचा होगा कि दुश्मन देश में भी उनको दर्द बांटने वाले मिल जाएंगे। लेकिन ईश्वर ऐसा कभी नहीं करते। बुरा वक्त परीक्षा के लिए आता है और ईश्वर आपका मनोबल बनाए रखने के लिए त्रिजटा को भी जरूर भेजते हैं। चाहे आप किसी भी पेशे में हों, खराब समय का सामना कभी भी किसी को भी करना पड़ सकता है। ऐसे में केवल अपने आस-पास विचरने वाली त्रिजटाओं को पहचानो और उनका संग करो। ऐसे जन न तो आपको निराश होने देंगे और न आपको कभी कोई घातक कदम उठाने देंगे।

आज समाज में अगर डिप्रेशन और आत्महत्याओं के केस इतने ज्यादा बढ़ रहे हैं तो उनका एक मात्र कारण यही है कि इंसान सबकुछ अकेले झेलने पर आमादा है। न तो खुद किसी का दर्द बांटता है और न अपना दर्द किसी से कहता है। ये सही है कि हर किसी से अपने दिल की व्यथा नहीं कहनी चाहिए, लेकिन ईश्वर ने इतनी समझ सबको दी है कि वह अपने हितैषियों की पहचान कर सके। एक बार ऐसे लोगों की पहचान कर लें और फिर अपने दर्द को उनके साथ बांटें और उनके दर्द में भी भागीदार बनें। इससे आप जीवन की कठिनाइयों से आसानी से पार पा सकते हैं। लेकिन अगर आप खुद को अपने तक समेटते चले जाएंगे तो आप बुरे वक्त में बेहद अकेला महसूस करेंगे। जीवन व्यर्थ लगने लगेगा और आपका मन घातक कदम उठाने की राय भी दे सकता है।

इसलिए त्रिजटा को हमेशा अपने आसपास रखो। त्रिजटा उस उम्मीद का नाम है जो कभी आपको गिरने नहीं देती। कठिन से कठिन समय में भी हमेशा आपको आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। ये त्रिजटा आपके मन में भी हो सकती है और आपके आसपास भी, ये जहां भी हो इसे पहचानो और इसके साथ समय बिताओ।