Tuesday, March 16, 2010

नाम पर नहीं अपने काम पर ध्यान दें


राम काज करिबे को आतुर, हनुमान जी को राम काज कि इतनी लगन थी कि उन्होंने कभी अपना ध्यान ही नहीं किया। उनको न नाम की चिंता थी, न आराम की, न किसी मान और सम्मान की चाह। उनके लिए तो बस राम जी का काज होना जरुरी था।

जब भगवन राम का संधि प्रस्ताव लेकर अंगद को रावण के पास जाना पड़ा तब रावण ने अंगद से कहा कि राम की सेना में एक भी ऐसा बलशाली नहीं जो मेरा मुकाबला कर सके। राम खुद पत्नी के वियोग में दुखी है, जामवंत बूढा है, विभीषण तो स्वाभाव से कायर है, सुग्रीव कितना वीर है सब जानते हैं, इनमें से कोई मेरे सामने नहीं ठहरता। लेकिन हाँ एक बन्दर है जो थोडा बलशाली है, जिसने लंका को आग लगे थी। बाकी सब तो बेकार हैं। इस पर अंगद ने रावण के दरबार में अपना पांव जमाकर अपने और राम के बल का एहसास रावण को करा दिया था।

इसके बाद जब अंगद वापस अपने शिविर में आये तो उन्होंने हनुमान जी से यही पुछा कि तुमने पूरी लंका को जला दिया, रावण के मद को चूर कर दिया और वहां अपना नाम तक बता कर नहीं आये। रावण तुम्हारा नाम तक नहीं जानता। इस पर हनुमान जी का जवाब था कि मैं वहां अपना नाम करने गया था या राम जी का काम करने गया था।

हनुमान जी हमें काम के प्रति समर्पण सिखाते हैं। हनुमान जी के भक्त तो बहुत मिल जायेंगे, हर मंगल को लम्बी-लम्बी कतार मंदिरों में दिखती हैं, लेकिन हनुमान जी को सही में फ़ॉलो करने वाले कम ही हैं। आज अधिकांश लोगों को अपने काम से जयादा अपने नाम की चिंता रहती है। चाहे वह अपना नाम हो, अपने प्रोडक्ट का नाम हो या अपनी कंपनी का नाम। बाकायदा ब्रांडिंग के डिपार्टमेंट बनाये गए हैं, जन संपर्क के माध्यम से पत्रकारों को लुभाने की कोशिश की जाती है। लेकिन काम पर उतना ध्यान नहीं है। बस किसी तरह जल्दी से नाम हो जाये, और कमाई बढे।

दरअसल नाम और यश किसी भी काम का बाई-प्रोडक्ट होता है। जब आप निरंतर कीसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मेहनत करते हैं तो उसके रिजल्ट के साथ आपको यश या अपयश मिलता है। जो खुद फैलता है। न तो उसको कोई रोक सकता है और न कोई जबरदस्ती यश प्राप्त कर सकता है। मीडिया और आधुनिक संसाधनों की मदद से अगर आप ने नाम अर्जित कर भी लिया तो वह ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है। लेकिन फिर भी लोग नाम के चक्कर में लिए बौराए-बौराए घुमते हैं। पत्रकारों के कंधे दबाते फिरते हैं। और इस सब में काम कहीं पीछे छूट जाता है।

ज्वलंत उदाहरण अपने नेता ही हैं। जिनका काम से ज्यादा अपनी छवि और नाम पर ध्यान रहता है। कॉर्पोरेट घरानों में भी अब ये युद्ध छिड़ गया है। इसका सबसे बड़ा नुकसान ये हो रहा है कि किसी भी व्यक्ति या संसथान की सही इमेज लोगों तक नहीं पहुँच पाती है। जब वास्तविकता का पता चलता है तो कहीं ज्यादा अघात पहुचता है। इसलिए नाम से ज्यादा अपने काम पर ध्यान देने की जरूरत है। इसी में व्यक्ति, समाज और देश का भला छिपा है। वैसे भी रामायण कहती है कि- हानि लाभ जीवन मरन यश अपयश विधि हाथ। ये छः चीज़ें विधि के हाथ छोड़कर अपने काम पर ध्यान देंगे तो आधी मुश्किलें खुद दूर हो जाएँगी।

8 comments:

  1. you are welcome to the bloggers community.
    some of the last lines are not visible in the article. this is a technical fault. u can correct this by editing your blog and slecting normal font size for the not visible lines.
    in all a commendable effort. good writing. keep it up.

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  2. काम से नाम होता है
    नाम से काम नहीं…………

    पड़ आजकल तो सबकुछ उल्टा-पुल्टा चल रहा है । बढ़िया आलेख । स्वागत है । आभार

    कृप्या वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दे टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।

    गुलमोहर का फूल

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  3. बेहद प्रशंसनीय प्रयास है। मुदमंगलमय संत समाजू। जिमि जग जंगम तीरथराजू।। आपके चिंतन और सत्संग का सबको लाभ मिले, यही शुभकामना।

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  4. swagat hai blog ki dunia me apka. apki bat se hum sahamat hain, kintu sab nam par hi nahi martey.

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. nice, we can get inspiration from Hanumanji

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  7. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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