मधुबन में गोपियों संग रचाया गया रास भगवान कृष्ण की जीवनी का महत्वपूर्ण अंग है। रासलीला के बिना श्री कृष्ण की लीला अधूरी है। रास एक विशेष प्रकार का नृत्य होता है, जिसमें एक नायक होता है जो अनेक नायिकाओं के संग घूम-घूम कर नृत्य करता है। श्री कृष्ण को रास में महारथ हासिल थी। कहा जाता है कि श्री कृष्ण एक घेरे में नृत्य कर रही गोपियों के संग इतनी तीव्र गति से नृत्य करते थे कि प्रत्येक गोपी को यही लगता था कि कृष्ण केवल उन्हीं के संग नृत्य कर रहे हैं किसी और गोपी के पास जा ही नहीं रहे। जबकि वास्तविकता में श्री कृष्ण की गति इतनी तेज होती थी कि हर गोपी को यही लगता था कि कन्हैया केवल उन्हीं के साथ नृत्य कर रहे हैं।
इसी प्रकार रामायण में भी एक ऐसा प्रसंग आता है जब भगवान राम पल भर में अनेक लोगों का अभिवादन
स्वीकारते हैं। लंका विजय के बाद जब श्री राम पुष्पक विमान से अयोध्या नगरी में पधारते हैं तो हजारों अयोध्यावासी नम आंखों के साथ उनके स्वागत में खड़े मिले। यहां भगवान राम ने ऐसी लीला रचाई कि वो प्रत्येक नगर वासी के साथ निजी तौर पर मिले। श्री राम हर नगरवासी का एक-एक करके अभिवादन स्वीकार करते हैं, पर उनकी गति इतनी तेज है कि इस काम में उनको बहुत देर नहीं लगी। और हर नगर वासी इस बात को लेकर खुश और संतुष्ट दिखा कि राम ने बड़े प्यार से निजी तौर पर उनके हालचाल लिये।
कहने का भाव ये है कि संबंधों में ‘पर्सनल टच’ हमेशा आपको करीब लाता है। लेकिन भारत में चली आ रही लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में शासन और जनता के बीच ये ‘पर्सनल टच’ मिसिंग है। 67 साल से ये हालात हैं कि आम जनता सरकार के साथ खुद को जुड़ा हुआ महसूस नहीं करती। अबकी बार आम चुनाव में जब नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के साथ-साथ पूरे देश में घूम-घूम कर सैकड़ों रैलियों को संबोधित किया तो लोगों ने खुद को उनसे जुड़ा हुआ महसूस किया और परिणाम सबके सामने है। जरूरत इस बात की है कि सत्ता में बैठने के बाद भी शासक जनता के साथ जुड़ाव बनाए रखे। सत्ता के कोलाहल में जनता की आवाज दबनी नहीं चाहिए। लेकिन लोकतांत्रिक दस्तूर ऐसा रहा है जिसमें सत्ता मिलने के बाद जनता को हाशिए पर डाल दिया जाता है और पांच साल बाद ही उसकी सुध आती है।